शनिवार, 1 मई 2010

घुमकुड़िया एक बिखरती संस्था

घुमकुड़िया ! जो लोग इस शब्द से अनभिज्ञ हैं उनको यह थोड़ा अजीब लगेगा परन्तु
यह अपने में काफ़ी मायने रखता है खास कर उन लोगों के लिये जो प्राचीन काल से उन क्षेत्रों में अबाध निवास करते आये हैं जहाँ कि तब विकास की किरणें का हस्तक्षेप भी नहीं हु था और उनके लिये जो जनजातीय संस्कृति और नृजातीय संस्कृति के अध्येता हैं उनके लिये ये रहस्य रोमांच से भरा शब्द है.
लेकिन मैं इस धरा पर जन्मा हूँ तो सहज ही यहाँ कि संस्कृति मुझमें आत्मसात कर गयी है
आज भले हि विकास कि अन्धी आँधी ने हमारी अपनी संस्कृति के स्वर्णिम इमारतों को खंडहर बना डाला है औरबहुआयामी शहरी संस्कृति ने धर्म परिवर्तन के नाम पर उन स्वर्णिम कि सोने कि ईंटों को भ्रष्टाचार के बाजार में बेचने का काम किया है इस आधार पर कि वे हमें एक शहरी ईंसान बना रहें हैं।

इसकी कीमत हम सीधे साधे लोग चुकाते रहे और लोगों कि तिजोरियाँ भरती रहीं.
यूं तो घुमकुड़िया का मोटा मोटी अर्थ "युवागृहसे लगाया जाता है और येयुवागृहबहुत से जनजातीय क्षेत्रों में मौजूद हैं एवं उनकि अपनी संस्कृति में इसके विशद मायने हैं नगा संस्कृति में "मोरूंगमिलता है, गोंड जनजातिके लोगों ने इसे "घोटुलका नाम दिया हु है एवं मेरे सहयात्री मंडा अपनी संस्कृति में इसे "गितिओराके नाम सेबुलाते हैं तथा हमारी उराँव संस्कृति में इसे "जोंखएड़्पाऔर घुमकुड़ियाके नाम से पुकारते हैं.आमतौर पर "जोंखएड़्पाया घुमकुड़ियागाँव के "अखड़ा”(हिन्दी में-चौपाल)के पास स्थित एक नीची छत का आवास होता है,यह प्रायः लड़कों का होता है (लड़कियां प्रायः गाँव की एक विधवा महिला की देखरेख में रात्रि व्यतित करती हैं) जिसके सदस्यों को मुख्यतः सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का प्रशिक्षण दिया जाता है तथा सदस्यों से उम्मीद की जाती है कि वे घुमकुड़िया के अन्दर के क्रियाकलापों के बारे में गोपनीयता बरतें. मुख्यतः घुमकुड़िया का हमारेउराँव समाज में तीन बातों कि पूर्ति के लि स्थापना कि जाती रही है :-
()भोजन की खोज/शिकार में अपनी उपादेयता सिद्द करना, () अपने सामाजिक कर्तव्य में नवयुवकों कोप्रशिक्षित करने एक धर्मसभा की भुमिका निभाना, एवं () सन्तति जननशक्ति के संवर्धन के लिये धार्मिक/जादू समारोहों को संपन्न करने के लिये मंच प्रदान करना आमतौर पर इसके सदस्य दिन के समय अपने परिवर केसाथ रहते हैं और संध्याकाल में घुमकुड़िया में जमा होते हैं तथा नृत्यगान, खेल, लोककथायें, और लोकवार्त्ता जैसे कार्यक्रमों में शमिल होते हैं.इसमें सदस्यों के सोपान क्रम और वरीयता का ध्यान रखा जाता है तथा पदाधिकरियोंका चुनाव वरीय सदस्यों में से किया जाता है तथा मुख्यतः पाँच पदाधिकारी चयनित होते हैं और मुखिया को महतो कहते हैं
आमतौर पर इसमें दस वर्ष के बालक प्रवेश पाते हैं और वे अपने गृहस्थ जीवन प्रवेश के समय तक इसके सदस्य हैं.जैसा कि किस्से कहानियों के आधार पर माना जाता है कि युवागृह संस्था रोमांस और कामुकता से भरी जगह होती है और इसके भीतर स्वछंद यौन क्रियायें होती हैं , ये सब अधकचरे एवं
‌‌‌ ‌ ‌‌‌‌ ‌ अज्ञानी लोगों कि फैलायी बातेंहैं,जरा नजदीक से हम गम्भीर अध्ययन करें तो पाते हैं कि इसमें सीधे तौर पर यौन क्रिया वर्जित होती है, हाँ गोंड जनजाति के घोटुल के कम उम्र के सदस्यों को युवागृह कि वरिष्ठ लड़्कियाँ यौन व्यवहारों का प्रतिकात्मक प्रशिक्षण देती हैं.
एक दिलचस्प पहलू जिसका अध्ययन भली- भाँति प्रकार से नहीं किया गया है कि युवागृह सदस्यता अवधि में शयनगृह के अन्दर या बाहर स्थापित अनेक यौन संबंधों के क्या सामाजिक और सांस्कृतिक पहलु हैं?
जोंखएड़्पा (घुमकुड़िया) के सारे खर्चे गाँव के लोग सम्मिलित रुप से वहन करते हैंऔर इसके एवज में घुमकुड़ियाके सदस्यों को गाँव के सार्वजनिक कार्यों, पर्व त्यौहारों में सक्रिय रूप से सहभागिता रहती है. घुमकुड़िया के सदस्यगाँव के खेती-बारी के कामों मदद करने के एवज में जो धन प्राप्त करते उसे हैं घुमकुड़िया की साजसज्जा, रखरखाव और वाद्ययत्रों को खरीदने में खर्च किया जाता है, इन्हीं वाद्ययत्रों जैसे ?मांदर की थाप के साथ लोकगीत की आवाजजब रात को फ़िजा में गूँजती है तो लोगों के पांव खुद--खुद नृत्य करने लग जाते हैं.
आज भले ही शहरीकरण और आधुनिक जीवनशैली तथा उराँवों के धर्म परिवर्तन ने हमारी संस्कृति परबहुआयामी चोट किये ?हैं और इसमें सबसे ज्यादा चोट घुमकुड़िया पर हु है तथा ईसा बहुल जनजातीय गाँवों मेंतो घुमकुड़िया का अवशेष तक नहीं मिलता है, पहले जो किसी जनजातीय गाँव का सजा संवरा घर घुमकुड़ियाहोता था आज कहीं सुदूर जनजातीय गाँव में एक जीर्ण शीर्ण उपेक्षित सा घर देखने को मिलेगा.बड़ा दुःख होता है कियह कौन सी प्रगति है समाज की, कि हम अपने ही जड़ों को काट फेंके? सदियों पुरानी अपनी भाषा सभ्यता-संस्कृति,परम्परा को विदेशी प्रभाव, आधुनिक बनने के फेर में त्याग दें? जरा सोचें जिनकी हम नकल कर रहे हैंउन लोगों ने सदियों पुरानी अपनी भाषा, सभ्यता-संस्कृति,परम्परा को कितने सलीके से संजोया संवारा है चाहे वो चर्च हो, या कि एक पुरा शहर, या अपनी भाषा जिस पर कि किसी भी प्रकार का बाहरी सांस्कृतिक हस्तक्षेप उन्हेंबरदाश्त नहीं?
बाकि की चर्चा बाद में............................
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